मेरी गझलें


मेरी गझलें

   १.खॅंडहरोंके पार ..

हालमें खुशहाल है हम ,शक न कर
जश्नोसामाँकी नहीं कम, शक न कर

जिंदगीका आइना धुँधला हुआ
ना जराभी आँखमें नम ,शक न कर

दम-ब-खुद हैं ख्वाब तनहाई-पसंद
बेजुबानीका है मौसम,शक न कर

बेअदब बेबाकियाँ वो अब कहाँ
पर बचा है थोडा दमखम,शक न कर

खॅंडहरोंके पार है इक आशियाँ  
उसको पाकर ‘नूर‘ ले दम,शक न कर


(जश्नोसामाँ  - उत्सव आणि तयारी
दम-ब-खुद - मौन
   दमखम - जोर, शक्ती)

   २.सबूत चाहिये 

यहाँँपे होश- हवासोंके बुत है बिठलाये
कसमसे वोभी कभी थे जुनूँपे इठलाये  

बदन हुआ है हवा उम्र इक अफ़वाह लगे      
पहनके साँस कैसे जलसोंका जी बहलाये  

कभी थी आह कभी वाह दिलसे निकली थी 
मिटा वो शोर जब पन्ने खतोंके दहलाये  

दिलाने आये है वो याद भुलाया आलम 
करू यक़ींभी अगर साफ बात बतलाये  

‘’सबूत चाहिये’’ तब ये तक़ाज़ा था दिलबर
दिये तो ‘’नूर’’ नुमाइशपसंद कहलाये   .. 


३.गुज़ारा
 

शुक्रगुजारीमेंही गुज़ारा  हो जायेगा
फिरसे रोशन एक सितारा हो जायेगा

मैने क्यूँकर कलम डुबाया है स्याहीमे
लगता है ये शौक दुबारा हो जायेगा

हाँ दोस्ती थी दिलदारी थी एक हवा थी
उन यादोंमे जिक्र तुम्हारा हो जायेगा

कोई शिकवा नही शहर-ए-खामोशीसे
दर्दे-दिलको यहीं गंवारा हो जायेगा

पथरीले काले कुँएका गहरा पानी
नूर’ चमकता एक नजारा हो जायेगा ..

 ४.पहियोकी कुर्सी..

पहियोंकी कुर्सीमे बसती कायनात है
सोच अपाहिज हो जाये तो और बात है

मैंने वक्तोंको खोया है देर दूरतक
एक जिंदगी और एक ये मुलाकात है

ऐ नादाँ दिल मायूसीमे क्यूँ डूबा है
बिगडे-बिछडे लोग नही,बस खयालात है

सरजमीनसे सरको आज़ादी दिलवा दो
जल्लादोंके लिये कौनसी मुश्किलात है

मिली वो नजर खिली तबस्सुम 'नूर’ अब चलो
जश्ने-चिरागाँ अंदर बाहर चाँदरात है ..

(कायनात -विश्व
जश्ने-चिरागाँ- दीपोत्सव )



५. अधूरी नज़्म

मुझे भुला दो,अपना सब्र आज़माया करो
अधूरी नज़्म पूरी उम्र गुनगुनाया करो

कभी सराहा था तुमने मेरा अंदाज़े-बयाँँ 
दिलोदिमागसे ऐसी बला ह्टाया करो

निभा लो धूप फिजा ख्वाहिशोंसी बरसाते
मकाँमें दिलके सुकूँ सायोंसा बिछाया करो

बहुतही तेज है तीखी है तुम्हारी आदत
अजबसे नाज हमारेभी है उठाया करो

मेरे शहरमे रहो  "नूर"  मुझसे दूर रहो
कभी जो राह मिले तब तो मुस्कराया करो..



६. मेरे वतन..


वो मानते नादाँ तुझे , कहते तुझे उलझा चमन

गुस्ताखियाँ कर माफ हर इक बार तू मेरे वतन


के ये चित्र तेरे चरित्र ये : हमसे है ये इनसे है हम

पहचानते हर चाल हम कितनेभी हो टेढे चलन


उजले कईधुँधले कई ,कई बुझ गये तेरे चिराग

सदियोंकी लंबी दास्ताँ इन वादियोंमें हुई दफन


भूली नही बदली नहीं यादे शहीदे-कौमकी

लहरा तिरंगा लाल जब तेरे सो गये पहने कफन 


अनगिनत तेरी कोठियाँ ,चूल्हे तेरे ,तेरी रोटियाँ

अनगिनत सपनोंसे है रौशन दिल तेरा,तेरा जहन


तू फैसला हर दौरका करता रहा है बेजुबाॅं  

तेरे रूहकी खामोशियाॅं करे ‘नूरकी जागिर जतन..



७.ऐ कश्मीर


सरजमीनका ऊॅंचा तू सर  कश्मीर 

धन्य भारती तुझको पाकर   कश्मीर 


माॅंकै  कॅंधोपर अबतक तू पला बढा 

आज दूधका कर्ज अदा कर  कश्मीर 


अलग-थलग तुझको करना चाहे हैवाॅं 

उस नीयतका थूक दे जहर  कश्मीर 


कई लाल सो गये खूनके धब्बोंपर 

पहनो फिरसे उजली चद्दर  कश्मीर 


अमन रहे ,तू फले "नूरआबाद रहे 

अपना है तू अपने घरपर  कश्मीर 




-     नूर ( भारती.. )



Comments

Popular posts from this blog

कवयित्री आणि कविता

ज्ञानेश्वरी तत्त्वकाव्य परिचय -अध्याय नववा- राजविद्या राजगुह्ययोग

ब्रह्मराक्षस – गजानन माधव मुक्तिबोध यांच्या कवितेचा अनुवाद –